content="Blog, story, motivational, quotes, motovation, Moral story, Kids story, Horror story, Krishna story, Krishna motivation story.. Etc"/> content="text/html; charset=utf-8"/> content="English"/> Real Life story wala: महाशिवरात्रि की कथा

महाशिवरात्रि की कथा

 महाशिवरात्रि की कथा

इस वीडियो में हम महाशिवरात्रि की कथा ko पुरे विस्तार रूप से जानेंगे

तो आइए, शुरू करते हैं 

भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में महाशिवरात्रि का एक विशेष स्थान है। यह पर्व भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है और इसे हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण व्रत रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और भगवान शिव का अभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।


लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महाशिवरात्रि का महत्व क्या है? इसे क्यों मनाया जाता है? और इस दिन से जुड़ी प्रमुख कथाएँ कौन-कौन सी हैं? आज हम आपको इस पावन पर्व से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएँ सुनाने जा रहे हैं, जो आपको न केवल भगवान शिव के रहस्यमय व्यक्तित्व को समझने में मदद करेंगी, बल्कि उनके प्रति आपकी भक्ति को और भी गहरा करेंगी।



प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, महाशिवरात्रि का दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह का पावन अवसर माना जाता है। देवी सती के योगाग्नि में जलकर भस्म होने के बाद, भगवान शिव गहरे ध्यान में चले गए और संसार से पूरी तरह विमुख हो गए।


लेकिन दूसरी ओर, देवी सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। उन्होंने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने का संकल्प लिया। माता पार्वती की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ और तभी से इस दिन को "महाशिवरात्रि" के रूप में मनाया जाने लगा।


इसलिए इस दिन को "शिव और शक्ति के मिलन का पर्व" भी कहा जाता है। इस कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से व्रत करता है, उसे अपने जीवनसाथी के रूप में अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है और उसका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।



  देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। मंथन के दौरान अनेक रत्नों और चमत्कारी चीजों की प्राप्ति हुई, लेकिन जब समुद्र से हलाहल नामक विष निकला, तो पूरी सृष्टि संकट में पड़ गई। यह विष इतना जहरीला था कि इससे संपूर्ण ब्रह्मांड का विनाश हो सकता था।


देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस विष का संहार करें। भगवान शिव ने करुणा से भरकर उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और उसे निगला नहीं। इसके प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और तभी से उन्हें "नीलकंठ" कहा जाने लगा।


महाशिवरात्रि के दिन, शिवलिंग पर जल और दूध अर्पित करने का प्रचलन इसी कथा से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि शिवलिंग का जलाभिषेक करने से भगवान शिव के विष के प्रभाव को शांत किया जाता है और वे अपने भक्तों को जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति प्रदान करते हैं।



एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच विवाद हो गया कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है। यह विवाद इतना बढ़ गया कि समस्त लोकों में हलचल मच गई। तभी अचानक, एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जो आकाश और पाताल तक फैला हुआ था।


ब्रह्मा और विष्णु ने इस ज्योतिर्लिंग के छोर को खोजने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी के नीचे इस ज्योतिर्लिंग के अंत को खोजने चले गए, जबकि ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर आकाश में इसके ऊपरी छोर की खोज करने चले गए।


लंबे समय तक प्रयास करने के बाद भी जब वे इस ज्योतिर्लिंग का अंत न पा सके, तब उन्हें समझ में आया कि यह कोई साधारण शक्ति नहीं है। तभी भगवान शिव इस ज्योतिर्लिंग से प्रकट हुए और दोनों को बताया कि वे ही सृष्टि के मूल कारण हैं।


यह घटना महाशिवरात्रि के दिन ही हुई थी। तभी से इस दिन शिवलिंग की पूजा की जाने लगी और इस दिन भगवान शिव को जल, बेलपत्र, और दुग्ध अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।



  एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने गया लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला। वह भूखा-प्यासा एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया और शिकार के इंतजार में वहीं बैठा रहा।


रात भर जागते हुए, उसके हाथ से गलती से बेल के पत्ते नीचे गिरने लगे। संयोग से, पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था और शिकारी द्वारा गिराए गए बेल पत्र सीधे शिवलिंग पर जा रहे थे।


सुबह होते ही शिकारी को यह ज्ञात हुआ कि उसने अनजाने में पूरी रात भगवान शिव की पूजा कर ली थी। इससे वह पापों से मुक्त हो गया और भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।


यह कथा हमें यह सिखाती है कि महाशिवरात्रि के दिन यदि कोई भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव की आराधना करता है, तो उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और उसका जीवन सफल बनता है।


महाशिवरात्रि व्रत का महत्व और विधि

महाशिवरात्रि पर विशेष रूप से व्रत रखने की परंपरा है। भक्त इस दिन भगवान शिव का व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं। व्रत रखने की विधि इस प्रकार है:


स्नान करें और पवित्रता बनाए रखें।

शिवलिंग का अभिषेक करें: जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र अर्पित करें।

भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें: "ॐ नमः शिवाय" का जाप करें।

रात्रि जागरण करें और शिव कथा सुनें।

भक्ति और साधना के साथ इस दिन को बिताएँ।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भगवान शिव की असीम कृपा को प्राप्त करने का एक दिव्य अवसर है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि भक्ति, श्रद्धा और सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को भगवान शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।


इस दिन भगवान शिव का व्रत करने, रात्रि जागरण करने और शिवलिंग का जलाभिषेक करने से सभी दुखों और पापों से मुक्ति मिलती है।


तो इस महाशिवरात्रि, आइए भगवान शिव की भक्ति में लीन हों और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें!


हर-हर महादेव!








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